चोट को रोज निखारता रहा
पीर को शब्दोँ में ढालता रहा
बारहा आँधी तूफान आए पर
काव्य के पौधे को पालता रहा
खुशीयाँ तो बाँट लूँगा
पर गम न बाँट सकूँगा
रुलाना मेरा काम नहीं
आप को न रुला सकूँगा
कुमार अमदावादी
पीर को शब्दोँ में ढालता रहा
बारहा आँधी तूफान आए पर
काव्य के पौधे को पालता रहा
खुशीयाँ तो बाँट लूँगा
पर गम न बाँट सकूँगा
रुलाना मेरा काम नहीं
आप को न रुला सकूँगा
कुमार अमदावादी
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો