रातभर चाँदनी जागती है
चाँद के बारे में सोचती है
बाँसुरी कान में गूँजती है
आँख में रागिणी झूमती है
वीणा के तार से उठती लहरें
तृप्ति के तट को ढूँढती है
कुमार अहमदाबादी
चाँद के बारे में सोचती है
बाँसुरी कान में गूँजती है
आँख में रागिणी झूमती है
वीणा के तार से उठती लहरें
तृप्ति के तट को ढूँढती है
कुमार अहमदाबादी
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