શનિવાર, 16 જુલાઈ, 2011

गागर में सागर

                                        गागर में सागर
       रतनलाल सोनी का परिवार छोटा  मध्यमवर्गीय था| परिवार में चार ही व्यक्ति; खुद रतनलाल उन की पत्नी शारदादेवी पुत्र कमल पुत्री श्वेता थे| रतनलाल ग्राहकों के ऑर्डर पर गहने बनाते थे| वे अपनी कला में प्रवीण थे| शारदादेवी कुशल गृहिणी थी| पति पत्नी दोनों की  उम्र चालीस से ऊपर थी| कमल पंद्रह  श्वेता बारह वर्ष; के थे| दोनों भाई-बहन अभ्यास में तेजस्वी थे| दोनों की गिनती पाठशाला के सब से तेजस्वी विधार्थीयों में होती थी| दोनों पुस्तकप्रेमी थे वाचन के बेहद शौक़ीन थे| दोनों नगर के प्रतिष्ठित पुस्तकालय के आजीवन सदस्य  थेदोनों पुस्तकालय से भिन्न भिन्न विषयों  की पुस्तकें लाकर पढ़ते थे
      शारदादेवी कमल श्वेता को वाचन के शौक के बारे में कुछ नहीं कहती थी; मगर जाने क्यों रतनलाल को वाचन के शौक से चिढ थी: अरुचि थी| कभी कभार वे दोनों को डाँटते भी थे; पर दोनों पढाई में होशियार होने के कारण उन्हें डाँट कम ही पड़ती थी| पढाई के अलावा दोनों मम्मी को घरेलू कार्यों में  भी  मदद करते थे| दोनों के बारे में अडोश-पडोश या पाठशाला से भी कभी कोई शिकायत नहीं आती थी| इसलिए रतनलाल भी वाचन के बारे में ज्यादा कुछ कह नहीं पाते थे| रतनलाल को वाचन से इतनी अरुचि थी कि वो अख़बार भी नहीं पढ़ते थे; हाँ अख़बार में सोने चाँदी के  भाव जरुर देखते थे| रतनलाल कई बार शारदादेवी को कहते थे कि "तुम्हारी वजह से दोनों में वाचन का शौक विकसीत हुआ है| दोनों वाचन में कितना समय बर्बाद करते हैं!! तुमने शुरू से ध्यान रखा होता, नियंत्रण रखा होता तो ये नौबत आती|"
       कभी कभार इस मुद्दे पर पति पत्नी में छोटी-मोटी तकरार भी हो जाती| तब शारदादेवी बच्चों के पक्ष में दलील देते हुए कहती कि "दोनों पढाई में तेजस्वी हैं, घरेलू कार्यों में मुझे मदद करते हैं; और दोनों के बारे में कहीं से कोई शिकायत भी नहीं  आती: फिर आप को उन का वाचन का शौक क्यूँ अखरता है?" इस प्रश्न का रतनलाल के पास उत्तर होने के कारण वे चुप हो जाते|
        एक दिन कमल श्वेता को पता चला कि पापा को मुग़लशैली के गहनों का ऑर्डर मिला है: मगर पापा को मुग़लकालीन डिज़ाइनें कहीं नहीं मिल रही| उस दिन दोनों को वाचन के प्रति, पुस्तकों के प्रति पापा की अरुचि दूर करने का मौका मिल गया| दोनों पुस्तकालय से मुग़लकालीन गहनों की सचित्र जानकारीवाली पुस्तक ले आये पापा को दी| जरुरत पूरी हो रही थी इसलिए वो रतनलाल को अच्छी लगी| पुस्तक द्वारा ढेर सारी जानकारी चित्र मिलने के कारण वो काफी लाभदायक सिद्ध हुईरतनलाल  ने पुस्तक में दी गई जानकारी चित्रों पर आधारित गहनें बनायें; जो ग्राहक को बहुत पसंद आये| उस ग्राहक के मार्फ़त रतनलाल को और नए ग्राहक भी मिले| ज्यादा डिजाइनों की आवश्यकता पड़ने पर रतनलाल ने ज्वेलरी विषयक और पुस्तकें मंगवाई जो कमल श्वेता ने लाकर दी| ज्वेलरी की पुस्तकों का अध्ययन कर के रतनलाल ने कई नई डिजाइनें गहनें बनाये जो बहुत पसंद किये गए| रतनलाल को आर्थिक लाभ होने के साथ साथ अपने व्यवसाय के बारे में नई नई जानकारियाँ भी मिली| यूँ जरुरत पूरी होने के कारण रतनलाल में पुस्तकप्रेम जन्मा विकसीत हुआपुस्तकों   वाचन के कारण फायदा होते देख रतनलाल खुद पुस्तकें लेने के लिए पुस्तकालय जाने लगे| धीरे धीरे रतनलाल में भी कमल श्वेता की तरह वाचन के प्रति रूचि बढती गई| फिर तो वे ज्वेलरी के अलावा अन्य विषयों की पुस्तकें भी पढने लगे|
         एक दिन रतनलाल पुस्तक पढ़ रहे थे तब शारदादेवी ने उन के पास आकर हँसते हुए कहा "आप तो बच्चों को डाँटते थे कि वाचन का शौक अच्छा  नहीं, वाचन से सिर्फ समय बर्बाद होता है; और कुछ नहीं| जब कि आजकल मैं  देख रही हूँ आप भी काफी वाचन कर रहे हैं | फुरसद मिली नहीं कि पुस्तक हाथ में ली नहीं!! ये लगता ही नहीं  की आप को वाचन से चिढ थी; वाचन आप को अखरता था|
         रतनलाल हँसकर जवाब देते हुए बोले "सच कहूँ;  मैं स्वीकार करता हूँ वो मेरी भूल थी: पुस्तकों द्वारा हमें बहुत कुछ मिल सकता है अगर हम नियमीत वाचन करें| सच्चाई तो ये है की पुस्तकों में जो ग्यान  है वो " गागर में सागर" है|
                                                                                                कुमार अमदावादी

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