સોમવાર, 30 જાન્યુઆરી, 2012

प्रणय पंख

कट गये प्रणय पंख हमारे
स्व- भूलोँ की तलवार से
किस को सुनायेँ प्रेम कहानी
किस ने आँसुओँ की भाषा जानी
कुमार अमदावादी
Prerna Sharma
.." कलि - कुसुम से पथ सजा दूं ,
कंटकों को मैं बुहार दूं ,
अब आ भी जा प्रिय तू ,
तेरी राह में आँखें बिछा दूं ...!!" ----
... प्रेरणा --- ३ जनवरी २०१२
Mahesh Soni
कलि कुसुम से सजे पथ पर न चल सकता हूँ।
आँखे बिछी हो उस पर कैसे मैं चल सकता हूँ!
फूल भी मत बिछाओ मेरी वापसी के पथ पर;
कोमलता को कुचलते हुए मैं न लौट सकता हूँ॥
कुमार अमदावादी
 
चाशनी
प्यार की चाशनी पीये बिन कवि ना बन सकोगे।
घाव को शब्द में घोले बिन कवि ना बन सकोगे॥
कुमार अमदावादी
પ્યાર કી ચાસની પીયે બિન કવિ ના બન સકોગે.
ઘાવ કો શબ્દ મેં ઘોલે બિન કવિ ના બન સકોગે.
કુમાર અમદાવાદી
 
 

चोट

चोट को रोज निखारता रहा
पीर को शब्दोँ में ढालता रहा
बारहा आँधी तूफान आए पर
काव्य के पौधे को पालता रहा



खुशीयाँ तो बाँट लूँगा
पर गम न बाँट सकूँगा
रुलाना मेरा काम नहीं
आप को न रुला सकूँगा
कुमार अमदावादी

ચૂલા પર તપેલી છે
તપેલીમાં ચમેલી છે
તપેલીમાં ઉકળીને
નિખરી રહી ચમેલી છ
ચલક ચલાણું
પાંચ પતિઓ વચ્ચે વહેંચાઈ
સ્ત્રી છું કે હું ચલક ચલાણું છું
અભણ અમદાવાદી