રવિવાર, 5 ફેબ્રુઆરી, 2012

नृत्य करते सपने

कविता में शब्द श्रृँगार नारी का सा है
फूलों से लहलहाती फूलवारी का सा है
यहां आँसु भी है आहें भी
फूलों सी कोमल बांहे भी
बच्चों जैसी मुस्कान संग
शब्दों से उठती कराहें भी
कुमार एहमदाबादी

नीलगगन को मंच बनाएँ
शब्दों को पायल पहनाएँ
मन के सपने पूरे कर लें
सपनों को हम मोर बनाएँ
कुमार अमदावादी
शब्दोँ को शरमाने दे
अर्थोँ को रिझाने दे
गीतों ग़ज़लोँ को सावन
झरमर झर बरसाने दे
कुमार अहमदाबादी

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