રવિવાર, 19 ફેબ્રુઆરી, 2012

सूर्यास्त

             डूबतो जोयो सूरज में सांज न दरिया किनारे
             नीकऴेलो चाँद जोयो रात ना दरिया किनारे
                                                      दिलीप श्रीमाली
          ये गालगागा के चार आवर्तन में लिखा गया शेर है। दरिया यानी समंदर, समंदर किनारा शुरुआत और अंत का संगम है। किनारे पर समंदर के साम्राज्य का अंत व मानव आबादी की शुरूआत होती है।
शायर ने शेर में जीवन की दो विपरीत स्थितियों के संगम की; उस से पहले व बाद की स्थितियों की बात कही है।शाम को सूरज के डूबने पर दिन पूरा होता है मगर जीवन रुकता नहीं। रात्रि का आगमन होता है।
ईस शेर को अध्यात्मक अर्थ के साथ जोडा जा सकता है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं।मृत्यु बाद कहीं और नवजीवन शुरु होता है।मृत्यु सागर के किनारे की तरह मानवलोक व दिव्यलोक के बीच की सरहद है।
ईसी शेर का राजकीय परिस्थितियों के संदर्भ में अर्थघटन करें तो कह सकते हैं: ताकतवर सूर्य के अस्त के बाद 'कमजोर' चाँद अपना राज्य स्थापित करता है।एक शक्तिशाली सम्राट या साम्राज्य के पतन के बाद छोटे राजा नवाब रंग दिखाते हैँ। छोटे छोटे राज्यों की स्थापना करते हैं।

27।6।10 को जयहिन्द में मेरी कोलम 'अर्ज करते हैं' में छपे लेख का अंशानुवाद

2 ટિપ્પણીઓ:


  1. ♥*♥



    डूबतो जोयो सुरज में सांझ ना दरिया किनारे
    नीकऴेलो चांद जोयो रात ना दरिया किनारे


    दिलीप श्रीमाली के शे'र का अच्छा विवेचन किया है…


    आभार !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. राजेन्द्रजी प्रशंसा द्वारा हौसला बढ़ाना के लिए करने के लिए धन्यवाद

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