हमारे दर्द का कीजे भले न हल बाबू
जता के प्यार मगर कीजीए न छल बाबू
भगवानदास जैन
जैन साहब की ग़ज़लें बहुत मार्मिक व प्रासंगिक होती है। उन की ग़ज़लों में
वर्तमान व्यवस्था की कमजोरीयों प्रति आक्रोश और शोषितों के लिए सहानुभूति
होते हैँ।
ये लगाल गाललगा गालगाल गागागा मात्राओँ में लिखा गया
अर्थपूर्ण व बेहतरीन शेर है। शेर कहता है कि आप चाहे मेरी समस्या का समाधान
न करें; दर्द का निवारण न करें: पर
सहानुभूति दर्शाने के बाद छल मत करना। इन्सान को प्रेम न मिले तो उतनी
तकलीफ नही होती; जितनी छल से होती है। इन्सान अभाव के शून्य को सह सकता है।
छल से ठगे जाने की पीड़ा को सह नहीं सकता। पहले से घायल दिल को ठगना गिरते
तो लात मारने जैसा हो जाता है।
गुजराती अखबार जयहिन्द में मेरी कॉलम 'अर्ज करते हैं' में ता.25।09।2011 को छपे लेख के अंश का अनुवाद
कुमार अमदावादी
अभण अमदावादी
गुजराती अखबार जयहिन्द में मेरी कॉलम 'अर्ज करते हैं' में ता.25।09।2011 को छपे लेख के अंश का अनुवाद
कुमार अमदावादी
अभण अमदावादी
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો