શનિવાર, 24 સપ્ટેમ્બર, 2011

पत्थर पूजा

पूजते हो तुम भी पत्थर, पूजते हैं ये भी पत्थर।
फ़र्क क्या है फिर दोनों में, दोनों पूजते हो पत्थर॥
पत्थर को ये सूरत देते, तुमने बिन सूरत ही पूजा।
राम की मूरत पत्थर है तो, काबा भी इक पत्थर है॥

 पूजा जिस की ये करते हैं, सजदा उसका तुम करते हो।
शब्द है दो पूजा सजदा, माना 'उस' को मर्म ये है ॥
पूजा होती दो हाथों से, सजदा होता दो हाथों से।
 ये हाथों को जोड़ते हैं, पास पास तुम रखते हो॥

झुकते हैं ये सजदे में तो, दंडवत तुम करते हो।
रोजे से ये पाक होते, तुम भी तो व्रत करते हो॥
कुरबानी जो तुम देते हो, जीवबली कल ये देते थे।
पूजा तुमने इक पत्थर को, पूजते ये कइ पत्थर को।

क्या है फर्क? कहाँ है फर्क? गर है कोई मुझे बताओ।
गर न मिले जो फर्क तुम्हें तो, लड़ते क्युं हो ये समझाओ॥
मज़हब को न तीर बनाओ, ज्योत से बस ज्योत जलाओ।
मंदिर में ये नमाज़ पढ़ें तुम, तुम मस्जिद में आरती गाओ॥

ये तो चंद बातें हैं जो, मन मे मेरे उभरी है।
गहरा गोता जो भी लगाए, मोती ऐसे और भी पाऐँ॥
कैसे? कि पूजते हो तुम भी पत्थर, पूजते हैं ये भी पत्थर..........
                       कुमार अमदावादी

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો