ગુરુવાર, 22 સપ્ટેમ્બર, 2011

परिवर्तन

परिवर्तन की ठानो और गंगा नई बहा दो अब।
पुराने ग्यान वाद्यों पर नई सरगम रचा दो अब॥
न, ग्रंथो को जलाने से परिवर्तन नहीं होता।
सृजन की सोच से होता ये, क्रान्ति को बता दो अब।।
दो अफसर थक चुके, हैं मूल विपदाओं के।
नए सूरज नए चंदा को, ड्यूटी पे लगा दो अब॥
जवानी का ये है कर्त्तव्य, कि इतिहास वो लिखे।
गगन से ऊँची जाये उन, पतंगों को हवा दो अब॥
खज़ाना खोल देगा सामने तुम्हारे इक पल में।
भईया मन को कम्पूटर को, थोडा सा लगा दो अब॥
निराशा क्यों; जमीं बंज़र है? मेहनत के धनी किसान।
पसीने से करो उपजाऊ, श्रम का हल चला दो अब॥
सदियों से समस्याओं का कारण जो बने हैं वे।
कराये बैर जो लोगों में, ढांचे वे ढहा दो अब॥

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