चोट कहती है कहानी यार के संघर्ष की।
दास्ताँ है ये सकल संसार के संघर्ष की॥
सब शहीदों को जगह मिलती नहीं इतिहास में।
लिखी जाती दास्ताँ दो चार के संघर्ष की॥
सांड कोई, कोई मेंढक, बाज़ कौवा जिस में है।
चालबाजों से भरी सरकार के संघर्ष की॥
हाथ आया लक्ष्य भी जब हाथ से जाये फिसल।
टूट जाती साँस जिम्मेदार के संघर्ष की॥
नृत्य करते अंग सारे आज मंजिल मिल गई।
व्यक्त होती है कथा खुद्दार के संघर्ष की॥
है कहीं भगवान दे इस प्रश्न का उत्तर मुझे।
दुर्दशा क्यों होती है लाचार के संघर्ष की॥
सुई चुभोना खींचा जाना सहती है सब ओढ़णी।
चमचमाती दास्ताँ है तार के संघर्ष की॥
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