રવિવાર, 2 ઑક્ટોબર, 2011

दास्ताँ संघर्ष की

चोट कहती है कहानी यार के संघर्ष की
दास्ताँ  है ये सकल संसार के संघर्ष की
 
सब शहीदों को जगह मिलती नहीं इतिहास में
लिखी  जाती   दास्ताँ दो चार के संघर्ष की
 
सांड कोई, कोई मेंढक, बाज़ कौवा जिस में है
चालबाजों से भरी सरकार के संघर्ष की
 
हाथ आया लक्ष्य भी जब हाथ से जाये फिसल
टूट जाती साँस जिम्मेदार के संघर्ष की
 
नृत्य करते अंग सारे आज मंजिल मिल गई
व्यक्त होती है कथा खुद्दार के संघर्ष की
 
है कहीं भगवान दे इस प्रश्न का उत्तर मुझे
दुर्दशा क्यों होती है  लाचार के संघर्ष की
 
सुई चुभोना खींचा जाना सहती है सब ओढ़णी
चमचमाती दास्ताँ है तार के संघर्ष की

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