શનિવાર, 3 ડિસેમ્બર, 2011

गंगा का घर

गंगा का घर 
गंगा का है घर हिमाला
साजन गंगा का है सागर
रोज निकलती गंगा घर से
पिया से मिलने की खातिर
हर की पेडी पर वो रुकती
दो पल रुककर सुस्ता कर वो
पथ पर अपने आगे बढती
आखिर सागर में मिल जाती
घायल मेरा दिल हिमाला
भीगी आँखे हर की पेडी
गंगा का पथ गाल ये मेरे
दामन मेरा गहरा सागर
गंगा जिस में रोज है मिलती
अपनी हस्ती को है खोती
कुमार अमदावादी

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