परिवर्तन की ठानो और गंगा नई बहा दो अब।
पुराने ग्यान वाद्यों पर नई सरगम रचा दो अब॥
न, "ग्रंथो को जलाने से परिवर्तन नहीं होता।"
नए निर्माण से होता है, क्रान्ति को बता दो अब।।
पशु या खेत या इन्सान प्यासे ना रहें पौधे।
नदियाँ नहरें सीधी प्यासे होठों से लगा दो अब॥
है फाँसी की सजा के पात्र हत्याएं जो करते हैं।
कुविचारों, कुरीतियों को फाँसी की सजा दो अब॥
दो अफसर थक चुके, हैं मूल विपदाओं के, हल है कोई?
नए सूरज नए चंदा को, ड्यूटी पे लगा दो अब॥
जवानी का ये है कर्त्तव्य, कि इतिहास वो लिखे।
गगन से ऊँची जाये उन, पतंगों को हवा दो अब॥
खज़ाना खोल देगा सामने तुम्हारे इक पल में।
भईया, मन में कम्पूटर को थोडा सा बसा दो अब॥
निराशा क्यों! जमीं बंज़र है? मेहनत के धनी किसान।
पसीने से करो उपजाऊ, श्रम का हल चला दो अब॥
सदियों से समस्याओं का कारण जो बने हैं वे।
कराये बैर जो लोगों में, ढांचे वे ढहा दो अब॥
न जाने कब से सोया है ये जागेगा न अपने आप।
सुनाके ग्यान की शहनाई मानव को जगा दो अब॥
कुमार अमदावादी
पुराने ग्यान वाद्यों पर नई सरगम रचा दो अब॥
न, "ग्रंथो को जलाने से परिवर्तन नहीं होता।"
नए निर्माण से होता है, क्रान्ति को बता दो अब।।
पशु या खेत या इन्सान प्यासे ना रहें पौधे।
नदियाँ नहरें सीधी प्यासे होठों से लगा दो अब॥
है फाँसी की सजा के पात्र हत्याएं जो करते हैं।
कुविचारों, कुरीतियों को फाँसी की सजा दो अब॥
दो अफसर थक चुके, हैं मूल विपदाओं के, हल है कोई?
नए सूरज नए चंदा को, ड्यूटी पे लगा दो अब॥
जवानी का ये है कर्त्तव्य, कि इतिहास वो लिखे।
गगन से ऊँची जाये उन, पतंगों को हवा दो अब॥
खज़ाना खोल देगा सामने तुम्हारे इक पल में।
भईया, मन में कम्पूटर को थोडा सा बसा दो अब॥
निराशा क्यों! जमीं बंज़र है? मेहनत के धनी किसान।
पसीने से करो उपजाऊ, श्रम का हल चला दो अब॥
सदियों से समस्याओं का कारण जो बने हैं वे।
कराये बैर जो लोगों में, ढांचे वे ढहा दो अब॥
न जाने कब से सोया है ये जागेगा न अपने आप।
सुनाके ग्यान की शहनाई मानव को जगा दो अब॥
कुमार अमदावादी
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો