ज़िंदगी तालाब है
जल ज़हर है आब है
(विभाजन की पीड़ा सह चुके पंजाब को ये शेर समर्पित है )
... टूटकर भी देख लो
जी रहा पंजाब है
सुर्ख माणिक सी लगे
शर्म क्या नायाब है
भस्म कर दे पल में सब
क्रोध वो तेज़ाब है
ज़ुल्म सहती है 'फ़िज़ा'
लुट रहा असबाब है
सत्य की जय देख लूँ
ख्वाब अब तक ख्वाब है
छालों को देने जुबाँ
लेखनी बेताब है
कुमार अमदावादी
जल ज़हर है आब है
(विभाजन की पीड़ा सह चुके पंजाब को ये शेर समर्पित है )
... टूटकर भी देख लो
जी रहा पंजाब है
सुर्ख माणिक सी लगे
शर्म क्या नायाब है
भस्म कर दे पल में सब
क्रोध वो तेज़ाब है
ज़ुल्म सहती है 'फ़िज़ा'
लुट रहा असबाब है
सत्य की जय देख लूँ
ख्वाब अब तक ख्वाब है
छालों को देने जुबाँ
लेखनी बेताब है
कुमार अमदावादी
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