શનિવાર, 3 ડિસેમ્બર, 2011

खो गया

आदमी सो गया।
राख में खो गया॥

साँस थी बोझ पर।
अंत तक ढो गया॥

भोर से शाम तक।
हँसकर वो गया॥

नैन टकराये यूँ।
हादसा हो गया॥

खुशबू देने का गुण।
फूल में बो गया॥

क्या पता कितनों की।
मौत पे रो गया॥

भीड में सच कहाँ?
जाने कब खो गया॥

शब्द में छंद में।
भाव पिरो गया॥

शब्दरथ का 'कुमार'।
सारथी हो गया
कुमार अमदावादी

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