શનિવાર, 3 ડિસેમ્બર, 2011

उम्मीद

उम्मीद
ओ रे मनवा क्युं तू ये उम्मीद रखे
कोई तेरे संग चलेगा कोई तेरा संग करेगा
ईस दुनिया में आया है जो,
जो गया है ईस दुनिया से
संग न आया कोई उस के
ना ही कोई संग गया है
फिर तू क्युं उम्मीद रखे कोई तेरे

माना तूने खाया धोखा
पर नहीं तू कोई अनोखा
ईस दुनिया में कदम कदम पर
धोखे होते आये हैं
ईस दुनिया के लोगों ने
हँस के धोखे खाये हैं
फिर तू क्युं उम्मीद रखे कोई तेरे

हँसके जीवन जीना पड़ेगा
दर्द को भी पीना पड़ेगा
ईस दुनिया में जो रोया है
सबकुछ उस ने खोया है
जग में गर कुछ पाना है तो
मुस्कुराके जीना पड़ेगा
फिर तू क्युं उम्मीद रखे कोई तेरे

चलता रह तू बस दुनिया में
कारवाँ भी बन जाएगा
मंजिल पास आएगी तो
तुज को निशाँ भी मिल जाएगा
मंजिल उन को ही मिलती है
जो अकेले भी चलते हैं
फिर तू क्युं उम्मीद रखे कोई तेरे
कुमार अमदावादी

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