શનિવાર, 3 ડિસેમ્બર, 2011

श्रद्धांजली

फूल सी जिंदगी जी गई।
खुशबू से तरबतर कर गई॥

ध्रुव तारे सा जीवन जी कर।
सब को यादें मधुर दे गई॥

कर्म करना ही है जिंदगी।
कार्यों से सिद्ध तुम कर गई॥

आग में क्यों नहाना पड़ा?
फाँस कब कौन सी चुभ गई?

द्वार मनपीर के खोले बिन।
प्रश्नों के जाल कई बुन गई॥

पीर अक्सर ज़हर बनती है।
शीव बन हँस के विष पी गई॥

उम्रभर माली रोता रहे।
बरखा ऋत भेँट में दे गई॥

हम सिचेंगे कमल औ' गुलाब।
फूल दो प्यारे जो छोड़ गई॥

उम्रभर भर न पाएँगे हम।
शून्य सा शून्य जो छोड़ गई॥
कुमार अमदावादी

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