तपस्या के बिना सधता नहीं है ज्ञान बंदे।
अगर सध जाए टिकाना नहीं आसान बंदे॥
गगन के पार ले जाए जो, हैँ वो सारथि कौन?
दशमलव, शून्य उड़ाते हैं वायुयान बंदे॥
लगाते पार वो मल्लाह, नैया को जो लहरों;
दिशाओँ, वायुओँ से रखते हैं पहचान बंदे॥
पसीना नींव में सिमेन्ट के संग गर भरा जाए।
इमारत बनती अपने आप आलिशान बंदे॥
जड़ें जब मातृभाषा से जुड़ी हों गहरे तक।
कोई संस्कृति कभी खोती नहीं पहचान बंदे॥
विधि लंबी है बीजों से सही इंसान तक की।
पिता औ' माँ को बनना पड़ता है किसान बंदे॥
ग़ज़ल एवं सफ़र आरंभ होते पूर्ण होते।
है मत्ला कोख एवं मक्ता है शमशान बंदे॥
कुमार अमदावादी
अगर सध जाए टिकाना नहीं आसान बंदे॥
गगन के पार ले जाए जो, हैँ वो सारथि कौन?
दशमलव, शून्य उड़ाते हैं वायुयान बंदे॥
लगाते पार वो मल्लाह, नैया को जो लहरों;
दिशाओँ, वायुओँ से रखते हैं पहचान बंदे॥
पसीना नींव में सिमेन्ट के संग गर भरा जाए।
इमारत बनती अपने आप आलिशान बंदे॥
जड़ें जब मातृभाषा से जुड़ी हों गहरे तक।
कोई संस्कृति कभी खोती नहीं पहचान बंदे॥
विधि लंबी है बीजों से सही इंसान तक की।
पिता औ' माँ को बनना पड़ता है किसान बंदे॥
ग़ज़ल एवं सफ़र आरंभ होते पूर्ण होते।
है मत्ला कोख एवं मक्ता है शमशान बंदे॥
कुमार अमदावादी
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